नई दिल्ली, 22 मई। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार को लेकर जारी विवाद के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे हैं। इसमें उन्हें सफलता मिलती भी दिखाई दे रही है। इसी क्रम में देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी केजरीवाल का साथ देते हुए कहा है कि जुलाई में शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में दिल्ली में तबादलों और नियुक्तियों पर केंद्र के कार्यकारी आदेश का वह विरोध करेगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने आज शाम संवाददाताओं से कहा, “कांग्रेस संसद में जारी दिल्ली अध्यादेश का विरोध करेगी।”
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था। इसे केजरीवाल सरकार ने अपनी जीत के रूप में लिया था। बाद में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार 19 मई की रात को एक अध्यादेश लेकर आई।
केंद्र सरकार ने ‘दानिक्स’ काडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया। अध्यादेश तीन सदस्यों वाले राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के गठन की बात करता है, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे और मुख्य सचिव एवं प्रमुख गृह सचिव इसके सदस्यों के रूप में काम करेंगे।
केंद्र के इस अध्यादेश पर केजरीवाल सरकार हमलावर है। केजरीवाल को पहले ही नीतीश कुमार और अखिलेश यादव का साथ मिल चुका है। अब कांग्रेस का साथ मिलने से इस बात की उम्मीद बढ़ गई है कि राज्यसभा में सरकार का अध्यादेश पारित नहीं हो पाएगा।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में आया था, लेकिन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर संविधान बेंच के फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया है। दूसरी तरफ दिल्ली सरकार भी जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाकर लाए गए केंद्र के अध्यादेश को फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनैती देने वाली है।