नई दिल्ली, 11 जनवरी। अयोध्या स्थित राम मंदिर में 22 जनवरी को प्रस्तावित प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है। इस बीच राम मंदिर के उद्घाटन में चारों शंकराचार्यों के शामिल होने को लेकर संशय बना हुआ है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि यह कार्यक्रम सनातन धर्म के नियमों को ध्यान में रखकर नहीं किया जा रहा और वे शास्त्रों के विरुद्ध नहीं जा सकते, इसलिए वह सामरोह में शामिल नहीं होंगे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बोले – चारों शंकराचार्य उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होंगे
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने हरिद्वार में साफ किया कि चारों शंकराचार्य राम मंदिर उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होंगे। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी समारोह में शामिल होन से इनकार किया है। हालांकि, बाकी दो शंकराचार्यों- स्वामी भारतीकृष्णा और स्वामी सदानंद सरस्वती की ओर से इसे लेकर कोई बयान नहीं आया है और ना ही शामिल होने या शामिल नहीं होने को लेकर उन्होंने अपना रुख साफ किया है।
क्या हैं वे नियम, जिनके उल्लंघन की बात कर रहे हैं शंकराचार्य
उत्तराखंड के ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, निर्माण कार्य पूरा होने से पहले भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करना ठीक नहीं हैं। 22 जनवरी को अयोध्या में होने जा रहा राम मंदिर उद्घाटन का कार्यक्रम धर्मग्रंथों और नियमों के विरुद्ध है। राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुए बिना भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करना सनातन धर्म के नियमों का पहला उल्लंघन है। इसके लिए कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।
निर्माण कार्य पूरा होने से पहले भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करना ठीक नहीं
उन्होंने कहा, ’22 दिसम्बर, 1949 को आधी रात को विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति स्थापित की गई थी और 1992 में ढांचा गिरा दिया गया, इसलिए रामलला की प्रतिमा को दूसरी जगह विराजमान किया गया। ये सब घटनाएं किसी वजह से अचानक से हुई थीं, इसलिए उस वक्त किसी शंकराचार्य ने सवाल नहीं उठाया था, लेकिन अब कोई जल्दबाजी नहीं है। हमारे पास राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के लिए समय है और मंदिर का निर्माण पूरा हो जाने के बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए।’
‘हम शास्त्रों के विरुद्ध नहीं जा सकते’
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, ‘अब हम चुप नहीं रह सकते और कहेंगे कि राम मंदिर का काम पूरा हुए बिना उद्घाटन करना और भगवान राम की मूर्ति वहां विराजमान करने का विचार ठीक नहीं है। समारोह आयोजित करने वाले हो सकता है, हमें एंटी-मोदी कहें, लेकिन ऐसा नहीं है। लेकिन हम शास्त्रों के विरुद्ध नहीं जा सकते।’
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का कथन
वहीं निश्चलानंद सरस्वती ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी के गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य हैं। उन्होंने भी मंदिर के उद्घाटन में शास्त्रों के नियमान के उल्लंघन की बात कही है। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि मुझसे कोई सुझाव नहीं लिया गया तो मैं नाराज हूं। लेकिन स्कंद पुराण के अनुसार, यदि नियमों और रीति-रिवाज का ठीक से पालन नहीं किया जाता है तो मूर्ति में बुरी चीजें प्रवेश कर जाती हैं और उस क्षेत्र को नष्ट कर देती हैं।’
उल्लेखनीय है कि अन्य दो शंकराचार्यों की तरफ से राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने को लेकर रुख साफ नहीं किया गया है। स्वामी भारतीकृष्णा दक्षिण भारत के चिकमंगलूरु स्थित शृंगेरी मठ के शंकराचार्य हैं जबकि स्वामी सदानंद सरस्वती पश्चिम में गुजरात के द्वारका में शारदा मठ के शंकराचार्य हैं। वहीं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इसे लेकर कहा कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव, शाक्या और संन्यासियों का नहीं।