नई दिल्ली, 23 अक्टूबर। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना ने न्यायालय भवनों को न्याय के अधिकार की संवैधानिक गारंटी का आश्वासन देने वाला जीवंत प्रतीक बताते हुए शनिवार को कहा कि अलग परिणाम के लिए देश की न्याय प्रणाली के बुनियादी ढांचे को और मजबूत किया जाना जरूरी है।
सीजेआई रमना ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के अतिरिक्त कोर्ट कॉम्प्लेक्स के उद्घाटन के अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि भारत में अदालतें अब भी जीर्ण-शीर्ण संरचनाओं से काम करती हैं, जिससे उन्हें अपने कार्य को प्रभावी ढंग से करना मुश्किल हो जाता है।
न्यायमूर्ति रमना ने न्यायिक व्यवस्था की मजबूत बुनियाद को देश की प्रगति और विकास के लिए जरूरी बताया और केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू से संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (एनजे आईएआई) बनाने के प्रस्ताव को वैधानिक समर्थन देने के लिए कहा है।
उनहोंने कहा, ‘कानून के शासन द्वारा शासित किसी भी समाज के लिए अदालतें अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। न्यायालय भवन केवल ईंटों एवं अन्य सामानों से बने ढांचे नहीं हैं, वे जीवंत रूप से न्याय के अधिकार की संवैधानिक गारंटी का आश्वासन देते हैं।’
प्रधान न्यायाधीश ने न्यायालयों के बुनियादी ढांचे से संबंधित कुछ तथ्य साझा किए। उन्होंने बताया कि देश में न्यायिक अधिकारियों की कुल स्वीकृत संख्या 24,280 है, जबकि उपलब्ध अदालत हॉल की संख्या 20,143 है। इनमें से 620 किराए के हॉल शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कम से कम 26 फीसदी न्यायालय परिसरों में अलग महिला शौचालय की व्यवस्था नहीं है जबकि 16 प्रतिशत में पुरुष शौचालय नहीं हैं। केवल 54 प्रतिशत न्यायालय परिसरों में शुद्ध पेयजल की सुविधा है। केवल पांच फीसदी अदालत परिसरों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं।
न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि केवल 32 फ़ीसदी कोर्ट रूम में अलग रिकॉर्ड रूम हैं, जबकि मात्र 51 फ़ीसदी अदालत परिसरों में पुस्तकालय हैं। उन्होंने कहा कि केवल 27 प्रतिशत अदालत कक्षों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा के साथ न्यायाधीशों के पास पर कंप्यूटर सुविधा है। आश्चर्यजनक है कि न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार और रखरखाव की व्यवस्था अभी भी तदर्थ और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है।