नई दिल्ली, 12 मार्च। केंद्र सरकार ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के विरोध में हलफनामा दाखिल किया है। इस हलफनामा के जरिए केंद्र ने देश की शीर्ष अदालत को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिन्हें समान नहीं माना जा सकता।
दरअसल, समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका का विरोध किया। इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की बेंच ने की।
केंद्र ने सुनवाई के दौरान कहा कि समान लिंग के व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध रखने की (जो अब डिक्रिमिनलाइज किया गया है) एक पति, एक पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा के साथ तुलना नहीं की जा सकती।
ऐसी याचिकाओं को खारिज करने की शीर्ष अदालत से अपील
कोर्ट में दायर याचिकाओं को लेकर केंद्र अदालत से आग्रह किया कि एलजीबीटीक्यू+ जोड़ों द्वारा दायर मौजूदा कानूनी ढांचे के लिए चुनौतियों को अस्वीकार करें। केंद्र ने इस पर तर्क दिया कि समान लिंग के व्यक्तियों के विवाह का पंजीकरण भी मौजूदा व्यक्तिगत के साथ-साथ संहिताबद्ध कानून प्रावधानों जैसे ‘प्रतिबंधित संबंधों की डिग्री’ का उल्लंघन करता है।
केंद्र ने अदालत से कहा कि शादी की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच एक संघ का अनुमान लगाती है। यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के विचार और अवधारणा में शामिल है जिसे न्यायिक व्याख्या से इतर नहीं होना चाहिए।
इसके साथ ही केंद्र ने अपनी दलील में यह भी कहा कि शादी में प्रवेश करने वाले पक्ष अपने स्वयं के सार्वजनिक महत्व वाले एक संस्थान का निर्माण करते हैं क्योंकि यह एक सामाजिक संस्था है, जिसमें से कई अधिकार और दायित्व प्रवाहित होते हैं। केंद्र ने कहा कि विवाह के अनुष्ठान/पंजीकरण के लिए घोषणा की मांग करना साधारण कानूनी मान्यता की तुलना में अधिक प्रभाव है। पारिवारिक मुद्दे केवल एक ही लिंग के व्यक्तियों के बीच विवाह की मान्यता और पंजीकरण से बहुत परे हैं।