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राहत : केंद्र सरकार ने कपास पर आयात शुल्क छूट को 31 दिसम्बर तक बढ़ाया

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नई दिल्ली, 29 अगस्त। भारत का कपड़ा उद्योग, देश का दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र उच्च गुणवत्ता वाले कपास तक नियमित पहुंच चाहता है। मांग-आपूर्ति के निरंतर अंतर को देखते हुए केंद्र सरकार ने कपास पर आयात शुल्क छूट को इस वर्ष 31 दिसम्बर तक बढ़ा दिया है।

भारत के कुल वस्त्र निर्यात में सूती वस्त्र निर्यात का हिस्सा 33% है, जिससे कपास की निरंतर मांग में मदद मिलती है और किसानों को सीधे लाभ होता है। विभिन्न कपडा संघों ने कपास की सभी किस्मों को 31 दिसम्बर 2025 तक आयात शुल्क में 11% छूट देने के सरकार के कदम का स्वागत किया है।

वस्‍त्र मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इस आशय की जानकारी दी है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा अधिसूचित इस निर्णय से सूत, कपड़ा, परिधान और मेड-अप सहित संपूर्ण कपड़ा मूल्य श्रृंखला के इनपुट लागत में स्थिरता आने की उम्मीद है, जिससे निर्माताओं और उपभोक्ताओं, दोनों को राहत मिलेगी।

यह रणनीतिक हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करता है कि कपड़ा क्षेत्र वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना रहे और साथ ही घरेलू कपास किसानों के हितों की रक्षा भी हो। अधिकांश आयात विशिष्ट औद्योगिक आवश्यकताओं या ब्रांड-लिंक्ड निर्यात अनुबंधों को पूरा करते हैं और घरेलू कपास का स्थान नहीं लेते ।

किफायती, उच्च-गुणवत्ता वाला कपास निर्यात बाजारों में भारत की स्थिति मजबूत करता है, जिससे छोटे और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ निर्यात-उन्मुख इकाइयों के लिए ऑर्डर फिर से बढ़ रहे हैं। कपड़ा-परिधान मूल्य श्रृंखला 4.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है और रोज़गार के अवसरों में कमी रोकने और उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कपास की स्थिर आपूर्ति बेहद ज़रूरी है।

वहीं, कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति से उच्च-मूल्य वाले कपड़ों और परिधानों के उत्पादन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और घरेलू विनिर्माण लक्ष्यों को बल मिलेगा।

ज्ञातव्य है कि भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) द्वारा संचालित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था के माध्यम से किसानों के हितों की रक्षा की जाती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उनकी उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक मूल्य प्राप्त हो।

आयातित कपास अक्सर विशिष्ट औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और घरेलू कपास का विकल्प नहीं बनता। अधिकतर आयात, कम उत्पादन याजब घरेलू स्टॉक अपर्याप्त होता है, की अवधि के दौरान होता है, जिससे घरेलू खरीद के उच्चतम समय में प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। सरकार कपास की कीमतों पर कड़ी नज़र रखती है और आवश्यकतानुसार सुरक्षा उपाय लागू करने की लचीलापन बनाए रखती है।

अप्रैल-अक्टूबर 2024-25 के दौरान भारत के कुल कपड़ा और परिधान निर्यात में सूती वस्त्र निर्यात का लगभग 33% हिस्सा था, जिसका मूल्य 7.08 अरब अमेरिकी डॉलर था, जिससे यह रेडीमेड परिधानों के बाद दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया। कपड़ा उद्योग द्वारा 95% घरेलू कपास की खपत के साथ, शुल्क छूट से अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा मिलों को कपास किसानों को बेहतर मूल्य देने में सक्षम बनाती है।

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