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ब्रिटिश शोधकर्ताओं की उपलब्धि : फेफड़ों के कैंसर की जल्द पहचान में मदद करेगा नया ब्लड टेस्ट

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नई दिल्ली, 17 दिसम्बर। ब्रिटिश शोधकर्ताओं की एक टीम ने नया और उन्नत ब्लड टेस्ट विकसित किया है, जिससे फेफड़ों के कैंसर (लंग कैंसर) की पहचान और उसकी निगरानी रियल टाइम में की जा सकेगी। इससे बीमारी की पहचान में होने वाली देरी कम होगी और मरीजों के इलाज के नतीजे बेहतर हो सकेंगे।

FT-IR माइक्रोस्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का किया उपयोग

शोधकर्ताओं ने फूरियर ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड (FT-IR) माइक्रोस्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का उपयोग करते हुए मरीज के खून में मौजूद लंग कैंसर की एक अकेली कोशिका तक की पहचान कर ली। यह तकनीक उन्नत इंफ्रारेड स्कैनिंग तकनीक और कंप्यूटर विश्लेषण को मिलाकर काम करती है। इसमें कैंसर कोशिकाओं की खास रासायनिक पहचान (केमिकल फिंगरप्रिंट) पर ध्यान दिया जाता है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स ऑफ नॉर्थ मिडलैंड्स NHS ट्रस्ट (UHNM), कील यूनिवर्सिटी और लफबरो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दी।

भविष्य में अन्य कई प्रकार के कैंसर की जांच में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा

अध्ययन के प्रमुख लेखक और UHNM में ऑन्कोलॉजी के एसोसिएट स्पेशलिस्ट प्रोफेसर जोसेप सुले-सुसो ने कहा कि यह तरीका मरीजों को जल्दी जांच, व्यक्तिगत इलाज और कम इनवेसिव प्रक्रियाओं में मदद कर सकता है। भविष्य में इसे लंग कैंसर के अलावा अन्य कई प्रकार के कैंसर में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

शोध के अनुसार, सर्कुलेटिंग ट्यूमर सेल्स (CTCs) वे कैंसर कोशिकाएं होती हैं, जो ट्यूमर से अलग होकर खून के जरिए शरीर में घूमती हैं। ये कोशिकाएं यह समझने में मदद करती हैं कि बीमारी किस तरह आगे बढ़ रही है और इलाज कितना असरदार है। यही कोशिकाएं कैंसर के फैलने (मेटास्टेसिस) का कारण भी बन सकती हैं।

CTCs की पहचान के मौजूदा तरीके जटिल, महंगे और समय लेने वाले

वर्तमान में CTCs की पहचान के तरीके जटिल, महंगे और समय लेने वाले होते हैं। कई बार ये तरीके कैंसर कोशिकाओं को पहचानने में असफल भी हो जाते हैं क्योंकि खून में घूमते समय ये कोशिकाएं अपनी विशेषताएं बदल लेती हैं।

नई तकनीक में खून के सैंपल पर इंफ्रारेड किरणें डाली जाती हैं, जो टीवी रिमोट की रोशनी जैसी होती हैं, लेकिन कहीं ज्यादा शक्तिशाली होती हैं। अलग-अलग रसायन इंफ्रारेड रोशनी को अलग तरीके से अवशोषित करते हैं और CTCs का एक खास अवशोषण पैटर्न होता है, जिसे उनका केमिकल फिंगरप्रिंट कहा जाता है। कंप्यूटर के जरिए इस डेटा का विश्लेषण कर यह जल्दी पता लगाया जा सकता है कि खून में कैंसर कोशिकाएं मौजूद हैं या नहीं।

नई तकनीक मौजूदा तरीकों की तुलना में सरल और कम खर्चीली

Applied Spectroscopy जर्नल में प्रकाशित यह तकनीक मौजूदा तरीकों की तुलना में सरल और कम खर्चीली है। इसमें पैथोलॉजी लैब में पहले से इस्तेमाल होने वाली साधारण कांच की स्लाइड्स का उपयोग किया जाता है, जिससे इसे रोजमर्रा की चिकित्सा प्रक्रिया में अपनाना आसान हो जाता है। शोधकर्ता अब इस तकनीक को बड़े मरीज समूहों पर आजमाने की योजना बना रहे हैं। उनका लक्ष्य एक ऐसा तेज और ऑटोमेटेड ब्लड टेस्ट विकसित करना है, जिसे कैंसर के इलाज की प्रक्रिया में आसानी से शामिल किया जा सके।

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