मुंबई, 31 जुलाई। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक 17 वर्षीया किशोरी के 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गर्भ में पल रहा भ्रूण सहमति से बनाए गए संबंध का नतीजा है और इसे जीवित पैदा होना चाहिए।
हाई कोर्ट की औरगंबाद बेंच में मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति वाईजी खोबरागड़े ने 26 जुलाई को अपने आदेश में कहा है कि लड़की इस महीने 18 साल की हो जाएगी और वह दिसम्बर 2022 से लड़के के साथ सहमति से शारीरिक रिश्ते में थी। पीड़ित लड़की और आरोपित लड़के के बीच एक बार नहीं बल्कि कई बार शारीरिक संबंध बने थे और लड़की ने गत फरवरी में अपने गर्भधारण की जांच के लिए खुद किट खरीदा था और गर्भावस्था की पुष्टि की थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा, ‘इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता, जो स्वयं को पीड़िता बता रही है। शारीरिक संबंध और उससे होने वाले नतीजों को लेकर उसकी समझ पूरी तरह परिपक्व थी। यदि याचिकाकर्ता को गर्भधारण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी तो वह गर्भावस्था की पुष्टि के तुरंत बाद भी गर्भपात की अनुमति मांग सकती थी।’ दोनों जजों की पीठ ने कहा कि वह पीड़िता को गर्भ गिराने की अनुमति देने के इच्छुक नहीं है और इसलिए बच्चा जीवित पैदा होगा क्योंकि वो प्राकृतिक प्रसव केवल 15 सप्ताह दूर है।
गर्भवती किशोरी ने अपनी मां के जरिए हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका
गर्भवती किशोरी ने अपनी मां के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने खुद को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत खुद को एक “नाबालिग बच्ची” होने का दावा करते हुए गर्भ को गिराने की मांग की थी। पीड़िता की याचिका में दावा किया गया कि गर्भावस्था से उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा और भविष्य की पढ़ाई प्रभावित होगी।
दरअसल पीड़िता को गर्भपात के लिए हाई कोर्ट में इस कारण गुहार लगानी पड़ी क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत यदि गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक का होता है तो उस दशा में गर्भपात करने से मां-बच्चे के जीवन को खतरा होता है और इस कारण गर्भ की समाप्ति के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता होती है।