कोलकाता, 2 दिसंबर। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने राज्य सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में पदेन कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने मामले में कुलाधिपति की कानूनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।
उच्चतम न्यायालय ने केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति की पुनर्नियुक्ति से संबंधित एक मामले की सुनवाई में कहा कि कुलपतियों के चयन के मामले में राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख नहीं बल्कि वहीं एकमात्र चयनकर्ता हैं और उनकी राय सभी मामलों में अंतिम है। पदेन कुलाधिपति होने के नाते वह मंत्रिपरिषद की सलाह के तहत कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है।
बोस ने यहां शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, ”उच्चतम न्यायालय ने कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति की कानूनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार कुलाधिपति के पास है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन से दूर रहना चाहिए, खासकर कुलपतियों की नियुक्ति के मामले में।”
राज्य सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर बोस और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच खींचतान चल रही है। उच्च शिक्षा विभाग का दावा है कि कुलपतियों की नियुक्ति के आदेश अवैध हैं क्योंकि राज्यपाल ने नियुक्तियों से पहले विभाग से परामर्श नहीं किया।
पश्चिम बंगाल में कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बर्खास्तगी का जिक्र करते हुए बोस ने कहा कि सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करते हुए ये भर्तियां की थी।
उन्होंने कहा, ”मैंने उन्हें इस्तीफा देने का विकल्प दिया था और उनसे कहा था कि अगर आप इस्तीफा नहीं देते हैं तो कुलाधिपति होने के नाते मेरे पास आपको बर्खास्त करने का विकल्प है। लेकिन मैं इसमें प्रक्रिया का पालन करूंगा। मैं एक नोटिस दूंगा।
कुछ वक्त बाद कुलपतियों ने एक साथ मुलाकात की और मुझे बताया कि वे इस्तीफा दे देंगे। शिक्षा मंत्री भी वहां पर थे।” बोस ने कहा कि वह राज्य सरकार के सुझाव के अनुसार कुलपतियों के कार्यकाल में विस्तार को मंजूरी प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने कुलपतियों को योग्य नहीं पाया।