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इंग्लैंड के साथ हम सीरीज का पांचवां टेस्ट चाहते हैं, न कि एकमात्र टेस्ट : गांगुली

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नई दिल्ली, 13 सितम्बर। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष सौरभ गांगुली का कहना है कि भारत और इंग्लैंड के बीच प्रस्तावित एक टेस्ट मैच को सीरीज का पांचवां और निर्णायक मैच माना जाना चाहिए। उन्होंने इस मैच को एकमात्र टेस्ट के रूप में मानने की संभावना से भी इनकार किया। मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड पर गत 10 सितम्बर से प्रस्तावित यह टेस्ट भारतीय खेमे में कोविड-19 के मामले पाए जाने के बाद रद कर दिया गया था।

ईसीबी ने सीरीज के फैसले के लिए आईसीसी को लिखी है चिट्ठी

ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) को पत्र लिखकर रद किए गए मैच के भाग्य पर विवाद समाधान समिति (डीआरसी) के फैसले की मांग की है। आईसीसी  ने अब तक इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया है।

टेस्ट क्रिकेट के प्रारूप से समझौता नहीं किया जा सकता

गांगुली ने सोमवार को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘हम चाहते हैं कि सीरीज पूरी हो जाए क्योंकि यह हमारी (इंग्लैंड में) 2007 के बाद सीरीज में पहली जीत होगी। बीसीसीआई का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट वास्तविक प्रारूप है और इससे किसी भी स्थिति में समझौता नहीं किया जाएगा।’

भारत ने सीरीज में फिलहाल 2-1 की बढ़त ले रखी है। यदि इस मैच को ‘गंवा दिया’ की श्रेणी में रखा जाता है तो इससे ईसीबी को चार करोड़ पाउंड की बीमा राशि मिल सकती है। उसने दावा किया है कि इससे उसे मैच रद किए जाने से होने वाले नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी।

सौरभ ने कहा, ‘बात सिर्फ इतनी है कि बाद में जो टेस्ट मैच खेला जाएगा वह सीरीज का पांचवां मैच होगा।’ आईसीसी को यदि लगता है कि मैच का आयोजन कोविड-19 के कारण नहीं हो पाया तो फिर भारत आधिकारिक तौर पर 2-1 से सीरीज जीत जाएगा। इस तरह से मैच रद किए जाने को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के कोविड से जुड़े नियमों के अंतर्गत ‘स्वीकार्य’ माना जाता है।

चिंतित खिलाड़ियों पर एक सीमा से अधिक दबाव नहीं बना सकते थे

गांगुली ने कहा कि बीसीसीआई को निराशा है कि इस मैच का आयोजन नहीं हो पाया, लेकिन वह चिंतित खिलाड़ियों पर एक सीमा से आगे दबाव नहीं बना सकता था। उन्होंने कहा, ‘हम बेहद निराश हैं कि यह सीरीज बीच में ही खत्म हो गई। इसका एकमात्र कारण कोविड-19 का प्रकोप और खिलाड़ियों की सुरक्षा थी। हम एक सीमा तक ही उन्हें मजबूर कर सकते थे।’

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