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कोरोना से लड़ाई : एम्स में कोवैक्सीन की बूस्टर डोज का ट्रायल शुरू, हर वर्ष लेना पड़ सकता है एक शॉट

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नई दिल्ली, 25 मई। कोरोनारोधी टीका कोवैक्सीन की निर्माता हैदराबादी कम्पनी भारत बायोटेक ने सोमवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस) दिल्ली में वैक्सीन की बूस्टर डोज का ट्रायल शुरू कर दिया है। कम्पनी को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) के विशेषज्ञ पैनल से बीते अप्रैल में कोवैक्सीन की तीसरे डोज यानी बूस्टर डोज के लिए क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मिली थी।

स्वास्थ्य मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार बूस्टर डोज के ट्रायल में उन लोगों को शामिल किया जा रहा है, जिन्हें दूसरे चरण के ट्रायल के दौरान दूसरी डोज लिए छह महीने पूरे हो चुके हैं। यानी जिन्हें पिछले साल सितम्बर और अक्टूबर के बीच वैक्सीन लगी थी।

गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिकी वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी फाइजर और मॉडर्ना ने घोषणा की थी कि जिन लोगों को फाइजर-बायोएनटेक या मॉडर्ना कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज दी जा चुकी है, उन्हें इस साल बूस्टर शॉट की आवश्यकता होगी और उसके बाद हर साल वार्षिक शॉट की भी जरूरत पड़ सकती है।

एम्स से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस ट्रायल का मकसद यह जानना है कि बूस्टर डोज के बाद एंटीबॉडी के स्तर में कोई अंतर दिखता है या नहीं? यदि बूस्टर डोज से एंटीबॉडी बनने में बड़ा अंतर आता है तो इस बारे में विचार किया जाएगा। लेकिन अगर कोई विशेष फयादा नहीं हुआ तो ऐसा भी हो सकता है कि बूस्टर की जरूरत ही न पड़े।फिलहाल यह सब कुछ ट्रायल पर निर्भर करेगा।

बूस्टर डोज के ट्रायल के लिए दूसरे चरण में शामिल लगभग 400 में से 200 लोगों को लिया जा रहा है। इन 200 लोगों को दो ग्रुपों में बांटा जाएगा। पहले ग्रुप को वैक्सीन की बूस्टर डोज और दूसरे ग्रुप को प्लेसिबो दी जाएगी। इसके बाद दोनों ग्रुप का तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा, जिसके आधार पर यह तय किया जा सकेगा कि बूस्टर डोज लेने का फायदा है या नहीं।

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