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फंसे पाकिस्तानियों के लिए बंगलादेश मानवीय आधार पर बेहतर जीवन सुनिश्चित करेगा : हसीना

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ढाका, 7 मार्च। बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि उनकी सरकार ने मानवीय आधार पर उन ‘फंसे हुए पाकिस्तानियों’ (बिहारियों) के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बना रही है। जिन्होंने 1971 में बंगलादेश की आजादी के बाद पाकिस्तान जाने का विकल्प चुना था। बीएसएस रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। हसीना ने कहा यह योजना उन लोगों के लिए है, जो बिहारी बंगलादेश की स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान जाकर वहां की नागरिकता लेना चाहते थे लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें कभी भी नहीं स्वीकारा है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “1971 के बाद बिहारियों की कई पीढ़ियां पैदा हुईं और हम इंसान को इंसान के तौर पर देखना चाहते हैं। बिहारी बहुत मेहनती होते हैं और उनमें काम करने का हुनर ​​होता है।” उन्होंने कहा कि बिहारी अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ बंगलादेश में रह रहे हैं और वे जिनेवा कैंपों में एक छोटी सी जगह में अमानवीय जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार उनके लिए अच्छे आवास की व्यवस्था करना चाहती हैं और उन्हें उन नौकरियों में लगाना चाहती हैं, जिनके पास कौशल है। उन्होंने कहा कि सरकार उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए काम कर रही है, ताकि वे सभी बेहतर जीवन जी सकें।

बंगलादेश में ‘फंसे हुए बिहारी’ समुदाय गैर-बंगाली भाषी मुसलमानों को दर्शाता है, जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में आए थे, उनमें से ज्यादातर बिहारी समुदाय से थे। बाद में 1971 के बंगालदेश के मुक्ति संग्राम के दौरान उर्दू भाषी बिहारियों ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया, जिससे 1971 में बंगलादेश के आजाद होने के बाद लंबे समय तक उन लोगों को अविश्वास और कलंक का दंश झेलना पड़ा था।

प्रधानमंत्री ने कहा बंगलादेश के आजाद होने के बाद वे पाकिस्तान जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें वापस लेने के लिए पाकिस्तान ने कोई इच्छा जाहिर नहीं की और वे यहां फंसे रह गए। उन्हें देश के 13 जिलों में अस्थायी शिविरों में ठहराया गया था। राजधानी ढाका के पुनर्वास शिविरों में एक लाख से अधिक बिहारियों रह रहे हैं। जिनेवा कैंप ढाका में ऐसे शिविर में सबसे बड़े हैं।

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