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मंदिरों पर हमले बर्दाश्त नहीं, भारत ने ब्रिटेन व कनाडा को दिखाए कड़े तेवर

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नई दिल्ली, 21 सितम्बर। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ब्रिटेन और कनाडा में सिख कट्टरपंथ, मंदिरों पर हमले और हिंदू धर्म के प्रतीकों के तोड़फोड़ की बढ़ती घटनाओं की बारीकी से निगरानी कर रही है। इसको लेकर जल्द ही दोनों देशों को एक संदेश भी भेजने पर विचार कर रही है। भारत ने लेस्टर में भारतीय समुदाय के खिलाफ हुई हिंसा को लेकर कड़ा विरोध जताया है। इसको लेकर ब्रिटेन के अधिकारियों के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया है।

सरकार ने इस बात को भी संज्ञान में लिया है कि कैसे ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियां ​​अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए सिख कट्टरपंथियों द्वारा धन संग्रह को नजरअंदाज कर रही है। मोदी सरकार ने दोनों देशों में भारत विरोधी इन घटनाओं का जवाब देने का फैसला किया है। विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने दोनों देशों की घटनाओं पर संज्ञान लिया है।

वहीं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने यूक्रेन के कब्जे वाले क्षेत्रों में रूस द्वारा कराए जाने वाले ‘जनमत संग्रह की कड़ी निंदा की है। लेकिन, उन्होंने 19 सितम्बर को ब्रैम्पटन और ओंटारियो में प्रतिबंधित “सिख फॉर जस्टिस” संगठन द्वारा आयोजित तथाकथित जनमत संग्रह पर आंखें मूंद ली हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने ग्लोबल अफेयर्स कनाडा को तीन राजनयिक संदेश भेजे हैं और ट्रूडो सरकार से अवैध जनमत संग्रह को रोकने के लिए कहा है।

ट्रूडो सरकार ने 16 सितम्बर को मोदी सरकार को जवाब देते हुए कहा है कनाडा भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करता है और इस तथाकथित जनमत संग्रह को मान्यता नहीं देता है। यूक्रेन के मामले की तरह कट्टरपंथी सिखों द्वारा आयोजित जनमत संग्रह की पीएम ट्रूडो द्वारा कोई निंदा नहीं की गई। ट्रूडो सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कनाडा में व्यक्तियों को इकट्ठा होने और अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है।

कनाडा की प्रतिक्रिया में यह भी कहा गया है कि वे ओंटारियो के ब्रैम्पटन में स्वामीनारायण मंदिर में हाल ही में हुई बर्बरता से व्यथित हैं। रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के साथ सभी जानकारी साझा की गई है। आपको बता दें कि सिख कट्टरपंथी आंदोलनों को इन दोनों देशों में वित्त पोषित किया जाता है। कनाडा को पंजाब के गैंगस्टरों का केंद्र भी माना जता है। भारत ने न केवल ब्रिटेन, कनाडा बल्कि अमेरिका को भी यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत विरोधी सिख कट्टरपंथियों के खिलाफ काररवाई न करना मिलीभगत के समान है।

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