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असम का मोइदम्स ऐतिहासिक टीला भी यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल, पीएम मोदी ने दी बधाई

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नई दिल्ली, 26 जुलाई। असम के मोइदम्स ऐतिहासिक टीला शवागार को भी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की विश्व धरोहर सूची शामिल कर लिया गया है। नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में विश्व धरोहर समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया।

चराईदेव मोइदम्स बना भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल

मोइदम्स विश्व धरोहर सूची में शामिल होने वाला पहला सांस्कृतिक स्थल (सांस्कृतिक विरासत श्रेणी से) और उत्तर पूर्व का तीसरा समग्र स्थल है। दो अन्य काजीरंगा और मानस हैं, जिन्हें पहले ही प्राकृतिक विरासत श्रेणी के अंतर्गत अंकित किया गया था। आज की इस घोषणा के बाद चराईदेव मोईदम्स भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल बन गया।

सांस्कृतिक श्रेणी में चराईदेव मोईदाम को मिली जगह

संस्कृति मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार एक दशक से इसे विश्व धरोहर घोषित करने की मांग कर रही थी। चराईदेव मोइदम्स को सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नई दिल्ली में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र में नामित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समिति के कार्यक्रम का उद्घाटन किया था।

पीएम मोदी बोले – भारत के लिए यह बहुत खुशी और गर्व की बात

इस बीच पीएम मोदी ने चराईदेव मोइदम्स को यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल किए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने X पर एक पोस्ट में कहा, ‘भारत के लिए यह बहुत खुशी और गर्व की बात है! चराईदेव में मोईदम्स गौरवशाली अहोम संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें पूर्वजों के प्रति अत्यधिक श्रद्धा होती है। मुझे उम्मीद है कि अधिक लोग महान अहोम शासन और संस्कृति के बारे में जानेंगे। मुझे खुशी है कि मोइदम्स विश्व विरासत सूची में शामिल हो गए हैं।

चराईदेव मोइदम्स क्या है

चराईदेव मोईदम्स असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी। राजा को उनकी सामग्री के साथ दफनाया जाता था। चराईदेव मोईदम्स पूर्वोत्तर भारत का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। इन प्राचीन दफन टीलों का निर्माण 13वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान अहोम राजाओं ने कराया था।

घास के टीलों जैसे दिखने वाले चराईदेव मोइदम्स को अहोम समुदाय पवित्र मानता है। प्रत्येक मोइदम को एक अहोम शासक या गणमान्य व्यक्ति का विश्राम स्थल माना जाता है। यहां उनके अवशेषों के साथ-साथ मूल्यवान कलाकृतियां और खजाने संरक्षित हैं। मोइदम्स असमिया पहचान और विरासत की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है। चराईदेव मोईदम्स को असम का पिरामिड भी कहा जाता है।