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पूर्वोत्तर में 10वीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य विषय बनाने की योजना पर असम साहित्य सभा ने जताया विरोध

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गुवाहाटी, 10 अप्रैल। साहित्यिक संस्था असम साहित्य सभा (एएसएस) ने पूर्वोत्तर राज्यों में 10वीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य विषय बनाने के कदम की आलोचना की है और सरकार से स्थानीय भाषाओं के संरक्षण एवं प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है।

क्षेत्रीय भाषाओं और असमिया भाषा का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा : जाधव चंद्र शर्मा

एएसएस के महासचिव जाधव चंद्र शर्मा ने एक बयान में कहा कि यदि हिन्दी को अनिवार्य बनाया जाता है, तो संपर्क भाषा के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं और असमिया भाषा का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि सभा सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में असमिया की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार पर दबाव बना रही है, लेकिन इस संबंध में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है।

दरअसल, असम में विपक्षी दलों ने केंद्र की उस घोषणा का विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं। उन्होंने इस कदम को ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया कदम’ करार दिया। कांग्रेस और असम जातीय परिषद सहित विपक्षी पार्टियों ने यह फैसला वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लोगों के हितों के खिलाफ है।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गत सात अप्रैल को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि पूर्वोत्तर के सभी राज्य 10वीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं।

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