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आशा पारेख को भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान, वर्ष 2020 के लिए दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड प्रदान किया जाएगा

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नई दिल्ली, 27 सितम्बर। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को कहा कि दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को 2020 के दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। दादा साहब फाल्के पुरस्कार को भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।

अवॉर्ड पाने वाली 52वीं शख्सियत होंगी आशा

भारतीय सिनेमा जगत को आगे बढ़ाने में आशा पारेख का भी बड़ा योगदान रहा है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह 52वीं हस्ती होंगी। अनुराग ठाकुर ने कहा, ‘आशा भोंसले, हेमा मालिनी, उदित नारायण झा, पूनम ढिल्लों और टीएस नागभरण की सदस्यता वाली दादा साहब फाल्के समिति ने 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में आशा पारेख को पुरस्कार देने का फैसला किया है।’

कई भाषाओं की फिल्मों में कर चुकी हैं काम

आशा पारेख अपने दौर की सबसे महंगी एक्ट्रेसेस में एक रही हैं। उन्होंने पंजाबी, गुजराती और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कम्पनी भी लॉन्च की थी और टीवी शोज भी बनाए। उन्हें वर्ष 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। अनुराग ठाकुर ने आशा के बारे में कहा, ‘उन्होंने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और 1998 से 2001 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की अध्यक्ष रहीं।’

30 सितम्बर को होगा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह

सिनेमा के क्षेत्र का यह सर्वोच्च पुरस्कार (दादा साहब फाल्के पुरस्कार) हर साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में प्रदान किया जाता है। इस साल यह कार्यक्रम 30 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आशा पारेख को पुरस्कार प्रदान करेंगी। सुपरस्टार रजनीकांत को पिछले वर्ष इस अवॉर्ड से नवाजा गया था।

आशा पारेख की कुछ यादगार फिल्में

79 वर्षीया आशा पारेख ने ‘दिल देके देखो’, ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’ और ‘कारवां’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया है। उन्हें हिन्दी सिनेमा की आइकॉनिक एक्ट्रेस माना जाता है। पारेख ने 1990 के दशक के आखिर में प्रशंसित टीवी धारावाहिक ‘कोरा कागज’ का निर्देशन किया था। एक निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी उनका काम अभूतपूर्व रहा।

बतौर बाल कलाकार की शुरुआत

आशा पारेख ने बतौर बाल कलाकार अपने करिअर की शुरुआत की थी। तब इंडस्ट्री में लोग उन्हें बेबी आशा पारेख नाम से जानते थे। सिनेमा जगत में उनका सफर बहुत लंबा रहा है। आशा की जिंदगी तब बदली, जब फेमस फिल्म डायरेक्टर बिमल रॉय ने उन्हें इवेंट में डांस करते देखा और उन्हें अपनी फिल्म मां (1952) में काम दिया। उस वक्त आशा सिर्फ 10 साल की थीं।

जब पिट गई थी आशा की फिल्म

इसके बाद बिमल ने वर्ष 1954 में आई फिल्म ‘बाप बेटी’ में आशा को मौका दिया, लेकिन फिल्म हिट नहीं हुई तो वह निराश हो गए। आशा ने फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने लीड एक्ट्रेस के तौर पर शुरुआत की। कहते हैं कि विजय भट्ट की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में किए गए काम के लिए उन्हें खारिज कर दिया गया था।

…और स्टार बन गईं आशा पारेख

फिल्ममेकर का दावा था कि आशा पारेख एक स्टार एक्ट्रेस बनने के काबिल नहीं थी। लेकिन ठीक आठ दिन बाद वो हुआ, जिसने सबको हैरान कर दिया। फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के अपोजिट फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) में साइन किया और इस फिल्म ने आशा पारेख को स्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने करिअर में कभी मुड़कर नहीं देखा।

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