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बांग्लादेश में बिगड़ते हालात के बीच लगभग एक हजार भारतीय छात्र लौटे, हिंसा में मृतकों की संख्या 115 तक पहुंची

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नई दिल्ली, 20 जुलाई। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ बांग्लादेश में पिछले कुछ दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शनों  को चलते शेख हसीना सरकार ने भले ही शुक्रवार की रात से राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लागू कर दिया और सैन्य बलों की राष्ट्रीय राजधानी ढाका सहित विभिन्न हिस्सों में तैनाती कर दी है। लेकिन देश के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। मीडिया की खबरों के अनुसार गत मंगलवार से अब तक 115 लोग हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं और सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं।

इस बीच, भारतीय विदेश मंत्रालय ने शनिवार को बताया कि बांग्लादेश से 778 भारतीय छात्रों की सुरक्षित वापसी हो चुकी है। इसके साथ ही बांग्लादेश से अब तक लौटने वालों की कुल संख्या 998 हो गई है।

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘ढाका में भारतीय उच्चायोग और हमारे सहायक उच्चायोग बांग्लादेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 4,000 से अधिक छात्रों से लगातार संपर्क में हैं। साथ ही, उन्हें आवश्यक सहायता मुहैया कराई जा रही है। ढाका में भारतीय उच्चायोग चटगांव, राजशाही, सिलहट और खुलना में स्थित सहायक उच्च आयोगों से संपर्क बनाए हुए है। बांग्लादेश में फैली हिंसा के बाद फिर से शांति बहास करने में पूरी सहायता दी जा रही है।’

वहीं भारत, नेपाल और भूटान के 360 से अधिक नागरिक मेघालय पहुंचे हैं, जिससे राज्य में शरण लेने वालों की संख्या 670 से अधिक हो गई है। गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शुक्रवार को 363 लोग दावकी एकीकृत जांच चौकी के जरिए मेघालय पहुंचे, जिनमें 204 भारतीय, 158 नेपाली और एक भूटानी नागरिक शामिल है।

सरकारी नौकरियों में 30% तक आरक्षण खत्म करने की मांग

गौरतलब है कि बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी उस सिस्टम को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं, जिसके तहत 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले पूर्व सैनिकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाता है। प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचा रही है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पार्टी ने मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था। छात्र चाहते हैं कि इसे योग्यता आधारित प्रणाली में तब्दील किया जाए। वहीं, हसीना ने आरक्षण प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि युद्ध में भाग लेने वालों को सम्मान मिलना चाहिए, भले ही वे किसी भी राजनीतिक संगठन से जुड़े हों।