अहमदावादः कुछ घटनाएं जीवन पर ऐसा प्रभाव छोड़ जाती हैं जो आपको आने वाले कई सालों तक जूझने की ताकत प्रदान करती हैं. ऐसा ही कुछ वरिष्ठ पत्रकार रौनक पटेल के पिताश्री नारन भाई पटेल के देहांत के बाद उनके परिवार द्वारा पिता के देह-दान का निर्णय कीया, जो पुरे समाज के लिए एक प्रेरणादाई कदम है.
मकरसंक्रांति के पर्व को पर समाज के हर वर्ग के लोग इसे दान के पर्व के तौर पर भी मानते हैं. दान-पुण्य के इस अवसर पर गुजरात मिडिया क्लब (GMC) ने इंस्टीटियूट ऑफ़ किडनी डिसीज़ एन्ड रिसर्च सेंटर (IKDRC) तथा अंगदान फाउंडेशन के साथ मिलकर अंगदान के लिए चलाये जा रहे अपने अभियान में लोगों को नए सिरे से इस महान कार्य के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करने का कार्यक्रम से सुरु किया, इस दौरान रौनक के पिताश्री के देह-दान का ये समाचार सबसे ज्यादा पत्रकार बिरादरी को प्रेरित करेगा और अंगदान के प्रति लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए जिस दृढ़निश्चय के साथ लिखा और दिखाया जा रहा है उसे और मजबूती मिलेगी.
गुजरात मिडिया क्लब के प्रमुख और सिनियर जर्नालिस्ट निर्णय कपूरने बतायां के, रौनक पटेल के पिताजी के देह-दान की खबर सुनी तो पहली बार में मन सोच में पड़ शायद स्वीकार नहीं कर रहा था (एक पत्रकार के तौर पर कई बार मृत्यु के पश्चात् परिजनों द्वारा अंगदान की घटनाओं को रिपोर्ट किया होगा पर जब आप अपने आसपास ऐसा कुछ घटित होते हुए देखते हैं तब एहसास कुछ अलग होता है). फोन उठाकर रौनक से बात की तो उसने जो बयान किया वो परिवार की समाज के प्रति गंभीर सोच और इच्छा शक्ति परिचय देता है. रौनक ने बताया की उसके पिताजी शिक्षक थे और उन्होंने पूरा जीवन विज्ञान के प्रचार-प्रसार में खपा दिया. 90 के दशक की शुरुवात में उन्हें श्रेष्ट शिक्षक का एवार्ड भी मिला. उनकी हमेशा से देह-दान करने की इच्छा थी क्योंकि वो मानते थे की मानव शरीर के अभ्यास के अवसर कभी भी बंद नहीं होने चाहिए, इसीलिए 10 साल पहले श्री नारन भाई और उनकी पत्नी दोनों ने ही अहमदाबाद सिविल अस्पताल जाकर खुद को देह-दान के लिए रजिस्टर करवा लिया था जिस वजह से परिवार के लिए ये निर्णय लेना ज़रा भी मुश्किल नहीं हुआ.
गुजरात मिडिया क्लब के प्रमुख निर्णय कपूरने कहां के, रौनक से बात करते ही मुझे अगस्त 2021 का वो वाकया भी याद आ गया जब IKDRC और GMC 13 अगस्त 2021 को वर्ल्ड ऑर्गन डे के अवसर पर अंगदान के लिए मिलियन प्लेज का अभियान शुरू करने जा रहे थे तब हमने रौनक से इसे सपोर्ट करने के लिए कहा तो उसने सामने से इवेंट से पहले ना सिर्फ कई प्रोग्राम करने के सजेशन दिए बल्कि अपने चैनल पर खुद, बड़े ही इनोवेटिव तरीके से अपने बहुचर्चित “हूँ तो बोलिश” कार्यक्रम में इसे प्रसारित भी किया. मुझे तब भी लगा था की ये व्यक्ति सही मायनो में अंगदान के महत्व को समझता है लेकिन आज समझ में आया की इस सकारात्मक सोच की प्रेरणा रौनक को कहाँ से मिली थी.
जीवन भर विज्ञान के प्रचार-प्रसार से जुड़े रहे श्री नारनभाई कानजीभाई पटेल ने जाते जाते भी देह-दान करके मानव शरीर के अभ्यास के क्षेत्र में साइंस के एडवांसमेंट के प्रति अपने कमिटमेंट को पूरा किया और ये एक शिक्षक की हमे सबसे बड़ी सीख है. आज़ादी का स्वर्णिम काल चल रहा है क्या हम कैडेवर डोनेशन को प्रमोट करके अपने देश को लाइव रिलेटेड डोनेशन से मुक्त नहीं कर सकते ?