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मधुमिता हत्याकांड : अमरमणि त्रिपाठी 19 वर्ष बाद जेल से रिहा, प्रक्रिया पूरी होने के बाद बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचा आदेश

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गोरखपुर, 25 अगस्त। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी एवं उनकी पत्नी मधुमणि की करीब 19 वर्षों बाद जेल से रिहाई हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ती उम्र और बीमारियों के कारण रिहाई का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार की रात कारागार प्रशासन ने दोनों की रिहाई का आदेश जारी किया था। शुक्रवार को कुछ घंटों में ही जिलाधिकारी ने जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर पति-पत्नी को रिहा करने की प्रक्रिया पूरी कर दी।

कवयित्री मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि को 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी

मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि को 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी। वह इससे पहले से ही जेल में बंद थे। कई बीमारियों के कारण पिछले कुछ सालों से अमरमणि और उनकी पत्नी को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। रिहाई का आदेश अस्पताल में ही रिसीव कराया गया।

अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने कहा कि फिलहाल अस्पताल के डॉक्टर तय करेंगे कि उन्हें घर ले जाया जा सकता है या किसी हायर सेंटर में रेफर किया जाएगा। अमनमणि ने कहा, ‘भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली है। डॉक्टर जो भी कहेंगे, उसी के अनुसार फैसला किया जाएगा।’

मधुमिता की 2003 में लखनऊ में हत्या कर दी गई थी

लखीमपुर शहर के मिश्राना की रहने वाली कवयित्री मधुमिता शुक्ला की वर्ष 2003 में लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मधुमिता के परिवार ने उस समय मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी व उनकी पत्नी मधु समेत कई लोगों पर हत्या मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में अमरमणि व उनकी पत्नी मधु को उम्रकैद की सजा हुई थी।

अमणमणि की रिहाई पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

मधुमिता का परिवार पिछली रात अमरमणि की रिहाई का आदेश जारी होते ही शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। मधुमिता केस की पैरोकार उनकी बहन निधि दिल्ली पहुंच गई और सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई पर रोक से इनकार कर दिया।

मधुमिता के भाई विजय शुक्ल ने कहा, ‘हमारा परिवार निराश और डरा हुआ है। हमें अब परिवार की सुरक्षा की चिंता सता रही है। ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी बहन निधि का पूरा संघर्ष बेकार चला गया। अब वकीलों से राय मशविरा कर आगे कदम बढ़ाएंगे।’

मधुमिता से प्यार में बर्बाद हो गया अमणमणि का राजनीतिक सफर

उल्लेखनीय है कि अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक और सामाजिक जीवन कवयित्री मधुमिता शुक्ला के प्यार में बर्बाद हो गया। लखीमपुर की मधुमिता वीर रस की कविताएं पढ़ती थीं। अमरमणि के संपर्क में आईं तो उनका नाम बड़ा हो गया। मंच से मिली शोहरत और सत्ता से नजदीकी ने उन्हें पावरफुल बना दिया।

अमरमणि त्रिपाठी से उनका रिश्ता धीरे-धीरे प्रेम में बदल गया। दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गए। मधुमिता प्रेग्नेंट हो गईं। उन पर गर्भपात करवाने का दबाव बढ़ा, लेकिन उन्होंने नहीं करवाया। इसी बीच, 9 मई 2003 को सात महीने की गर्भवती मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

मधुमिता की हत्या के मामले में संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी को आरोपित बनाया गया। प्रदेश में बसपा सरकार थी और अमरमणि त्रिपाठी मंत्री थे। CBCID ने 20 दिनों की जांच के बाद मामला CBI को सौंपा। गवाहों से पूछताछ हुई तो दो गवाह पलट गए।

कई बार रिहाई की उम्मीद बंधी, लेकिन फंस जाता था पेच

प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों को रिहा करने के लिए सरकार ने रिहाई का मापदंड निर्धारित किया है। इसके अंतर्गत जेल में निरुद्ध 60 वर्ष के ऊपर बुजुर्ग बंदियों और जिनकी सजा 10 वर्ष से ऊपर 14 वर्ष से कम की सज़ा पूरा हो चुका है, उन कैदियों की रिहाई की उम्मीद जगी। उसमें अमरमणि और मधुमणि का नाम भी प्रमुख रूप से शामिल था।

दोनों इस दायरे में आ रहे थे, लेकिन अमरमणि का मामला इस वजह से फंस जाता था कि उन्हें उत्तराखंड की अदालत से सजा मिली थी। अमरमणि की रिहाई के लिए उनके बेटे अमनमणि ने भी खूब संघर्ष किया। रिहाई के लिए पिता के प्रति अच्छे चाल-चलन की रिपोर्ट लगवाने के लिए वह अक्सर अफसरों के यहां चक्कर लगाते रहे।

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