नई दिल्ली/लखनऊ, 22 मार्च। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव एवं पार्टी के कद्दावर नेता मो. आजम खान ने मंगलवार को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि अखिलेश और उनकी टीम अब उत्तर प्रदेश विधानसभा में योगी आदित्यनाथ को घेरने का मन बना चुकी है।
पहली बार विस चुनाव लड़े अखिलेश करहल से निर्वाचित हुए थे
अखिलेश यादव ने आज लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंपा। आजमगढ़ से लोकसभा सांसद रहते हुए अखिलेश ने पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया था और उन्होंने मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट पर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार एवं केंद्रीय मंत्री एस.पी. सिंह बघेल को 67,504
आजम खान ने जेल में रहते हुए रामपुर से दर्ज की थी जीत
वहीं रामपुर से सपा सांसद आजम खान पिछले वर्ष फरवरी से ही रामपुर जेल में बंद हैं। उन्होंने जेल में रहते हुए रामपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के आकाश सक्सेना को 55,000 से अधिक मतों से हराया था।
इससे पहले चर्चाएं थीं कि अखिलेश यादव और आजम खान विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर लोकसभा में अपना कार्यकाल जारी रखेंगे क्योंकि वहां सपा के सिर्फ पांच सांसद हैं। लेकिन आज के फैसले से अखिलेश ने प्रदेश की राजनीति को विधानसभा के जरिए ही साधने की मंशा जाहिर कर दी है। इसकी वजह भी है कि 2017 के मुकाबले इस बार लगभग ढाई गुना ज्यादा यानी कुल 125 सीटें लेकर सपा गठबंधन ने यूपी विधानसभा में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
योगी आदित्यनाथ ने विधान परिषद की सदस्यता से दिया इस्तीफा
इस बीच आगामी 25 मार्च को प्रस्तावित यूपी सरकार के शपथ ग्रहण से पूर्व कार्यवाहक सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह ने मंगलवार को यह जानकारी दी। इस आशयक इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। जानकारी के अनुसार योगी
गौरतलब है कि भाजपा गठबंधन यूपी विधानसभा चुनाव में 403 में से 273 सीटों पर जीत हासिल की है। इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ भी अपना मुख्यमंत्री पद बचाने में कामयाब रहे हैं। इस चुनाव में आदित्यनाथ गोरखपुर की सदर विधानसभा सीट से जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे हैं।
दिलचस्प यह है कि योगी आदित्यनाथ ने भी पहली बार ही विधानसभा चुनाव लड़ा। जब वर्ष 2017 में आदित्यनाथ का चयन मुख्यमंत्री के पद के लिए हुआ था, उस समय वह गोरखपुर से पांचवी बार लोकसभा के सांसद थे और सीएम बनने के लिए विधान परिषद का रास्ता अपनाया था।