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बॉम्बे HC ने रद्द की दोषी की सजा, कहा- ‘बिना किसी यौन मंशा के पीठ और सिर पर केवल हाथ फेरना नहीं करता मर्यादा भंग’

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मुंबई, 14 मार्च। ‘बिना किसी यौन मंशा के नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर केवल हाथ फेरना उसकी मर्यादा भंग नहीं होती हैं।’ बंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने 28 वर्षीय एक शख्स की सजा को रद्द करते हुए ये टिप्पणी की है।

जानकारी के लिए बता दें कि ये मामला वर्ष 2012 का है और आरोपी उस वक्त 18 साल का था। शख्स पर 12 साल की एक लड़की की शील भंग करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। पीड़िता के मुताबिक, आरोपी ने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेरकर कमेंट किया था कि वह अब बड़ी हो गई है।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने सजा को रद्द करते हुए कहा कि दोषी की ओर से कोई यौन मंशा नहीं थी और उसके कमेंट से संकेत मिलता है कि उसने पीड़िता को एक बच्चे के रूप में देखा था।

न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि एक महिला की लज्जा भंग करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, लज्जा भंग करने का इरादा रखना। अभियोजन पक्ष इस तरह का कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाया है कि आरोपी का इरादा लड़की की मर्यादा भंग करने की थी।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि न तो 12-13 साल की पीड़ित लड़की ने अपनी ओर से किसी बुरे इरादे के बारे में बात की, लेकिन उसने जो बयान दिया, वह उसे बुरा लगा या उसने कुछ अप्रिय कृत्य का संकेत दिया, जिससे वह असहज हो गई।

पीठ ने कहा कि आरोपी के बयान से साफ संकेत मिलते है कि उसने लड़की को एक बच्चे के रूप में देखा था और इसलिए, उसने कहा कि वह बड़ी हो गई है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 15 मार्च, 2012 को अपीलकर्ता, जो तब 18 वर्ष का था पीड़िता के पीठ और सिर को छुआ था और कहा कि वह बड़ी हो गई है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, लड़की असहज हो गई और मदद के लिए चिल्लाने लगी थी।

ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए और छह महीने की जेल की सजा पाने वाले व्यक्ति ने हाईकोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। अपने आदेश में, एचसी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने वर्तमान मामले के रूप में गलती की थी, प्रथम दृष्टया, बिना किसी यौन इरादे के एक अचानक कार्रवाई प्रतीत होती है।